Saturday 3 September 2016

नसबंदी से भाग रहे पति, पत्नियां संभाल रही मोर्चा


-पुरुषों की तुलना में 41 गुना महिलाओं ने कराए ऑपरेशन
-पांच साल में सिर्फ 39 हजार पुरुष आए आगे, अब बदलेगी रणनीति
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डॉ.संजीव, लखनऊ
नारी सशक्तीकरण की तमाम कोशिशों के बीच पुरुषों ने जनसंख्या नियंत्रण का काम भी महिलाओं को सौंप दिया है। हालात ये हैं कि पति नसबंदी से भाग रहे हैं और पत्नियों को यह मोर्चा संभालना पड़ रहा है। बीते पांच साल के आंकड़ों की मानें तो पुरुषों की तुलना में 41 गुना महिलाओं ने ऑपरेशन कराए हैं, इस कारण स्वास्थ्य विभाग को भी अब रणनीति बदलनी पड़ रही है।
परिवार कल्याण के एक मजबूत तरीके के रूप में नसबंदी का इस्तेमाल किया जाता है, किन्तु पुरुषों की उदासीनता इस राह में बाधक बन रही है। प्रदेश में तो पुरुष नसबंदी के लिए तैयार ही नहीं होते हैं और महिलाओं को ही इसके लिए आगे आना पड़ता है। हालात ये हैं कि पिछले पांच सालों में प्रदेश में सिर्फ 39 हजार पुरुषों ने नसबंदी कराई है। इसके विपरीत इस दौरान 15.86 लाख महिलाओं ने नसबंदी कराई है। पुरुषों से 41 गुना ज्यादा महिलाओं ने नसबंदी कराने के साथ ही इस बाबत स्वास्थ्य विभाग का लक्ष्य पूरा करने में भी मदद की है। इस दौरान जहां लक्ष्य के विपरीत 57 फीसद महिलाओं ने नसबंदी कराई, वहीं पुरुषों में सिर्फ 27 फीसद लक्ष्य की पूर्ति हो सकी। प्रदेश में परिवार कल्याण के लिए प्रयोग किये जा रहे साधनों में पुरुष नसबंदी यानी नॉन स्कैलपेल वैसेक्टमी (एनएसवी) की हिस्सेदारी महज 0.2 फीसद है।
कैग ने की आपत्ति
भारत के नियंत्रक व महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी पुरुष व महिला नसबंदी के इस विभेद पर आपत्ति जाहिर की है। इस समय चल रहे विधानसभा के मानसून सत्र में पेश कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के लिए लक्ष्य ही पुरुषों की तुलना में 20 गुना अधिक था। दरअसल पांच साल के लिए पुरुष नसबंदी का लक्ष्य जहां 1.42 लाख था, वहीं महिला नसबंदी का लक्ष्य 28.04 लाख निर्धारित किया गया था। कैग ने इस पर आपत्ति जाहिर करते हुए पुरुष व महिला नसबंदी के लिए न्यायोचित लक्ष्य निर्धारण की संस्तुति की है। पुरुष नसबंदी बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाने की बात भी कही गयी है।
कारण जानने को पड़ताल
महिलाओं की तुलना में पुरुष नसबंदी कम होने के मसले पर स्वास्थ्य विभाग ने कारण जानने के लिए विशेष पड़ताल कराई। अभी पुरुषों को सरकारी अस्पताल से नसबंदी कराने पर दो हजार रुपये व निजी अस्पताल से कराने पर एक हजार रुपये मिलते हैं। पता चला कि यह राशि मिलने में भी दिक्कत हो रही है। उसके लिखा परिचय पत्र, बैंक खाता संख्या जैसी तमाम कागजी कार्रवाई जरूरी होती है। इस कारण कई बार अनुदान नहीं मिल पाता।
समाधान के छह सूत्र
-परिचय पत्र या बैंक खाता न होने पर नसबंदी कराने वाले को सरकारी अस्पताल ले कर जाएंगे।
-मुख्य चिकित्सा अधिकारी या उनके प्रतिनिधि ऐसे मामलों में प्रमाण पत्र जारी करने के लिए अधिकृत होंगे।
-नसबंदी कराने वाले व्यक्ति फोटो स्मार्ट फोन से खींच कर रेकार्ड में रखी जाएगी।
-नसबंदी के लिए पुरुषों को लाने वालों को अलग से मानदेय देने के साथ प्रमाण पत्र भी दिया जाएगा।
-बैंक खाता न होने पर नसबंदी कराने वाले को अनुदान नकद भी दिया जा सकेगा।
-ऑपरेशन कराने वालों से नसबंदी के बाद भी संवाद कायम रखा जाएगा।

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