Tuesday 24 May 2016

न पैसा खर्च कर पाए, न मरीज बुला सके


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-जारी हुई जिलावार रैंकिंग-
-राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों का 50.6 फीसद बजट ही सूबे में हुआ खर्च
-56 प्रतिशत तक घट गयी अस्पताल पहुंचे व भर्ती मरीजों की संख्या
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डॉ.संजीव, लखनऊ
बड़े-बड़े अस्पताल, अरबों रुपये खर्च, इसके बावजूद सेहत महकमा लक्ष्य नहीं पूरा कर सका है। वित्तीय वर्ष 2015-16 में सेहत पर न तो पैसे खर्च पाए, न ही अस्पतालों तक मरीज बुला सके। स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी जिलों की रैंकिंग को आधार माने तो राष्ट्रीय कार्यक्रमों का 50.6 फीसद बजट ही खर्च हो सका। अस्पताल में पहुंचे मरीजों की संख्या कुछ जिलों में 56 प्रतिशत तक घट गयी।
स्वास्थ्य विभाग ने 2015-16 में 25 अलग-अलग सूचकांकों को आधार बनाकर सभी 75 जिलों की रैंकिंग जारी की है। समग्र्र आंकड़ों के मुताबिक कुछ जिलों में तो 15 फीसद से कम बजट ही खर्च हो सका। निर्माण कार्यों के लिए मिले बजट का 81 फीसद धन खर्च हो सका। कुछ जिलों ने सौ फीसद खर्च किया तो कुछ दस फीसद पर ही सिमट गए। अस्पताल पहुंचे मरीजों की संख्या भी अपेक्षा के अनुरूप नहीं बढ़ सकी। कुल मरीजों की संख्या भले ही पिछले वर्ष 2014-15 की तुलना में 25.9 फीसद बढ़ी है, किन्तु औसतन 81 फीसद बेड ही भरे रह सके। कुछ जिलों में बाह्यï रोगी विभाग (ओपीडी) में मरीजों की संख्या 22 फीसद तक घटी, वहीं भर्ती होने पहुंचे मरीजों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 56 फीसद तक घट गयी है। अस्पताल तक प्रसव के लिए महज 75 फीसद महिलाएं ही पहुंच सकी हैं।
आयुष में अविश्वसनीयता
स्वास्थ्य विभाग ने अन्य बिन्दुओं के साथ आयुष विधा की ओपीडी में मरीजों की संख्या के आंकड़े भी मांगे थे। रिपोर्ट के मुताबिक आयुष ओपीडी के आंकड़े अत्यधिक अविश्वसनीय थे, इसलिए उन्हें स्वीकार ही नहीं किया गया। 73 जिलों के आंकड़ों को अविश्वसनीय मानकर खारिज कर दिया। इसलिए पूरी रिपोर्ट में आयुष ओपीडी के आंकड़े जोड़े ही नहीं गये।
28 बिन्दुओं पर रैंकिंग
स्वास्थ्य विभाग ने जिलावार रैंकिंग के लिए 28 बिन्दुओं को आधार बनाया। इनमें बाह्यï रोगी विभाग व भर्ती मरीजों की संख्या, पैथोलॉजी परीक्षण, संस्थागत प्रसव, टीकाकरण, नेत्र शल्य चिकित्सा, कंप्यूटरीकरण सहित 17 आधारों को बाह्यï सूचकांक और निर्माण व बजट के इस्तेमाल से जुड़े सात आधारों को आंतरिक सूचकांक माना गया। मातृत्व स्वास्थ्य के आधार पर चार सूचकांक थे।
ललितपुर रहा अव्वल
सर्वाधिक 107 अंकों के साथ ललितपुर जिला अव्वल पाया गया। शेष कोई जिला सौ अंकों तक नहीं पहुंच सका। दूसरे स्थान पर रहे बरेली को 99 अंक मिले हैं। 98 अंक के साथ फीरोजाबाद तीसरे स्थान पर रहा। चौथे स्थान पर झांसी को 97 व पांचवें स्थान पर मथुरा को 96 अंक मिले हैं।
कानपुर देहात फिसड्डी
रैंकिंग में सबसे पीछे रहा कानपुर देहात महज 57 अंक अर्जित कर सका है। सबसे नीचे की पांच रैंक में छह जिले हैं। बांदा को 59, कुशीनगर को 61 व फैजाबाद को 64 अंक मिले हैं। नीचे से पांचवें स्थान पर 65 अंक के साथ दो जिले चित्रकूट व फतेहपुर आए हैं।
ढीले अफसरों से मांगा जवाब
रैंकिंग के दौरान अलग-अलग बिन्दुओं पर आकलन हुआ है। इसमें पिछडऩे के लिए अफसरों की ढिलाई भी जिम्मेदार है। उनसे जवाब मांगा गया है। शासन, स्वास्थ्य निदेशालय व राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के स्तर पर सभी बिन्दुओं की मॉनीटङ्क्षरग हो रही है, ताकि मौजूदा वित्तीय वर्ष में उन्हें सुधारा जा सके।
-अरविंद कुमार, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य)

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