----
- हाईकोर्ट ने तीस फीसद सीटें देने पर उठाया सवाल
- पूछा, डिप्लोमा दिया जा सकता डिग्री में प्रवेश क्यों
----
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के सरकारी मेडिकल कालेजों की परास्नातक डिग्री सीटों पर प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग को तीस फीसद आरक्षण देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सवाल उठाया है। अदालत ने पूछा है कि जब एमसीआइ मान्यता के अनुसार ऐसे चिकित्सकों को डिप्लोमा दिया जा सकता है, तो डिग्र्री में प्रवेश क्यों मिल रहा है। ऐसे में पीएमएस कोटे की 51 सीटें फंस गयी हैं।
प्रदेश में प्रांतीय चिकित्सा सेवा के प्रति चिकित्सकों को आकर्षित करने व उन्हें रोके रखने के लिए तीन साल या अधिक ग्रामीण क्षेत्र के किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाले चिकित्सकों को मेडिकल कालेजों की परास्नातक सीटों पर 30 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। बीते सप्ताह उच्च न्यायालय ने इन सीटों पर डिग्री पाठ्यक्रमों में आरक्षण पर रोक लगा दी है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने स्वास्थ्य महानिदेशक को इस बाबत पत्र लिखा है। उनके मुताबिक हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) मानकों के अनुसार पीएमएस कोटे से आने वालों को सिर्फ डिप्लोमा ही दिया जा सकता है, फिर डिग्री में प्रवेश क्यों दिया जा रहा है। लिखा है कि यह मसला संज्ञान में आया है इसलिए तदनुरूप रणनीति बनाई जाए ताकि अगली काउंसिलिंग से पहले इस पर अंतिम निर्णय हो सके।
दरअसल इस मसले पर अब राज्य सरकार की ओर से स्वास्थ्य विभाग को बड़ी बेंच या सर्वोच्च न्यायालय में स्थगनादेश पाने के लिए अपील करनी होगी। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक का पत्र उसी परिप्रेक्ष्य में है। प्रदेश के मेडिकल कालेजों की परास्नातक डिप्लोमा सीटों को हटा दिया जाए तो एमडी, एमएस की 51 सीटें पीएमएस कोटे में आती हैं। पिछले दिनों हुई पीजीएमईई काउंसिलिंग में पीएमएस कोटे में सफल चिकित्सक विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र समय पर न मिलने के कारण शामिल नहीं हो सके थे। अब 16 मई से दूसरे दौर की काउंसिलिंग है। तब तक स्थगनादेश न मिला तो ये सीटें पीजीएमईई में सफल अन्य छात्र-छात्राओं को आवंटित कर दी जाएंगी।
----
- हाईकोर्ट ने तीस फीसद सीटें देने पर उठाया सवाल
- पूछा, डिप्लोमा दिया जा सकता डिग्री में प्रवेश क्यों
----
राज्य ब्यूरो, लखनऊ : प्रदेश के सरकारी मेडिकल कालेजों की परास्नातक डिग्री सीटों पर प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग को तीस फीसद आरक्षण देने पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सवाल उठाया है। अदालत ने पूछा है कि जब एमसीआइ मान्यता के अनुसार ऐसे चिकित्सकों को डिप्लोमा दिया जा सकता है, तो डिग्र्री में प्रवेश क्यों मिल रहा है। ऐसे में पीएमएस कोटे की 51 सीटें फंस गयी हैं।
प्रदेश में प्रांतीय चिकित्सा सेवा के प्रति चिकित्सकों को आकर्षित करने व उन्हें रोके रखने के लिए तीन साल या अधिक ग्रामीण क्षेत्र के किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाले चिकित्सकों को मेडिकल कालेजों की परास्नातक सीटों पर 30 फीसद आरक्षण की व्यवस्था की गयी है। इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी थी। बीते सप्ताह उच्च न्यायालय ने इन सीटों पर डिग्री पाठ्यक्रमों में आरक्षण पर रोक लगा दी है। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी ने स्वास्थ्य महानिदेशक को इस बाबत पत्र लिखा है। उनके मुताबिक हाईकोर्ट ने कहा है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआइ) मानकों के अनुसार पीएमएस कोटे से आने वालों को सिर्फ डिप्लोमा ही दिया जा सकता है, फिर डिग्री में प्रवेश क्यों दिया जा रहा है। लिखा है कि यह मसला संज्ञान में आया है इसलिए तदनुरूप रणनीति बनाई जाए ताकि अगली काउंसिलिंग से पहले इस पर अंतिम निर्णय हो सके।
दरअसल इस मसले पर अब राज्य सरकार की ओर से स्वास्थ्य विभाग को बड़ी बेंच या सर्वोच्च न्यायालय में स्थगनादेश पाने के लिए अपील करनी होगी। चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक का पत्र उसी परिप्रेक्ष्य में है। प्रदेश के मेडिकल कालेजों की परास्नातक डिप्लोमा सीटों को हटा दिया जाए तो एमडी, एमएस की 51 सीटें पीएमएस कोटे में आती हैं। पिछले दिनों हुई पीजीएमईई काउंसिलिंग में पीएमएस कोटे में सफल चिकित्सक विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र समय पर न मिलने के कारण शामिल नहीं हो सके थे। अब 16 मई से दूसरे दौर की काउंसिलिंग है। तब तक स्थगनादेश न मिला तो ये सीटें पीजीएमईई में सफल अन्य छात्र-छात्राओं को आवंटित कर दी जाएंगी।
----
No comments:
Post a Comment