Monday 15 February 2016

समाजवादी चोले में नयी योजनाओं का पिटारा


-सड़क से बीमा और सेहत तक की चिंता से समाजवाद को जोड़ा
-भाषण में समाजवादियों का जिक्र कर विधायकों का उल्लास बढ़ाया
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डॉ.संजीव, लखनऊ
'हम समाजवादियों की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं रहता है। हमें अपने वायदे पूरे करने में कठिनाइयां आयीं और परिस्थितियां हमारे अनुमान को झटका दे गयीं पर उससे हमारी हिम्मत में और उफान आया...।' इन पंक्तियों के साथ अपने मौजूदा कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश कर रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाजवादी चोले में नयी योजनाओं का पिटारा खोल दिया।
अपने बजट भाषण में उन्होंने बीच-बीच में समाजवाद व समाजवादी योजनाओं की पोटली खोली तो सदन मेजों की थपथपाहट से गूंजता रहा। सबसे पहले उन्होंने बताया कि समाजवादी पेंशन योजना के लाभार्थियों की संख्या 45 लाख से बढ़ाकर 55 लाख कर दी गयी है। फिर उन्होंने कृषक दुर्घटना बीमा योजना के स्थान पर 'समाजवादी सर्वहित बीमा योजना' प्रस्तावित की तो सपा विधायक प्रफुल्लित हो उठे। सड़कों के विकास की बात करते हुए मुख्यमंत्री ने 'समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस वे' का प्रस्ताव रखा। इस बार उल्लास के क्षणों से जुड़ते अखिलेश एक बार फिर 'हम समाजवादियों का हमेशा से मानना रहा है....' कहते हुए समाजवाद के कसीदे पढऩे लगे।
समाजवादी चोले को किसानों से युवाओं की ओर ले जाते हुए मुख्यमंत्री 'समाजवादी युवा स्वरोजगार योजना' का एलान किया और कहा कि इससे निश्चित रूप से युवा वर्ग समाज की मुख्य धारा में जुड़ेगा। माध्यमिक विद्यालयों से भी समाजवाद को जोड़ते हुए मुख्यमंत्री ने प्रदेश के 18 मंडलों में 'समाजवादी अभिनव विद्यालयों' की स्थापना की घोषणा की।
मुख्यमंत्री ने ग्र्रामीण विकास की योजनाओं का जिक्र करते हुए समाजवाद के पहरुओं डॉ.राममनोहर लोहिया और जनेश्वर मिश्र के नाम पर चल रही समग्र्र ग्र्राम विकास योजनाओं का जिक्र किया। एक बार फिर योजनाओं का विस्तार से ब्योरा देते हुए उन्होंने सबसे पहले 'समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना' के लिए 897 करोड़ रुपये की बजट व्यवस्था की बात कही। सेहत की चिंता करते हुए उन्होंने 'समाजवादी स्वास्थ्य बीमा योजना' का एलान करते हुए कहा कि धनाभाव के कारण वे किसी को लाइलाज नहीं रहने देंगे। समाज के हर तबके तक समाजवाद को पहुंचाने का लक्ष्य निर्धारित करते हुए मुख्यमंत्री ने 'समाजवादी हथकरघा एवं बुनकर पेंशन योजना' का एलान किया तो वे अल्पसंख्यकों के साथ दूसरे वर्गों को भी सीधे खुद से जोड़ते दिखे। 

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