Monday 22 February 2016

विभाग के पास नहीं 672 फार्मासिस्टों का हिसाब


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-जानकारी न दे पाने पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनाया सख्त रुख
-मुख्य सचिव ने सभी प्रमुख सचिवों को दिये ब्योरा सहेजने के निर्देश
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : सरकार के पास वर्ष 2000 के पहले सृजित फार्मासिस्ट पदों का ब्योरा ही नहीं है। उच्च न्यायालय में पेश आंकड़ों में 672 फार्मास्सिटों का हिसाब गड़बड़ा गया। इस पर उच्च न्यायालय के सख्त रुख के बाद शासन ने सभी प्रमुख सचिवों को सभी सृजित पदों का ब्योरा सहेजने के निर्देश जारी किये हैं।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में फार्मासिस्टों की नियुक्ति से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान गत दिनों न्यायालय ने प्रदेश सरकार पर सख्त टिप्पणी की थी। न्यायालय ने फार्मासिस्टों की नियुक्ति व पद सृजन के बारे में ब्योरा मांगा था। इसके जवाब में शासन की ओर से बताया गया कि वर्ष 2000 से पहले फार्मासिस्टों के पद सृजन से जुड़ा कोई भी ब्योरा या शासनादेश चिकित्सा स्वास्थ्य विभाग, स्वास्थ्य निदेशालय या सरकार के वित्त विभाग के पास नहीं है। यह जरूर बताया गया कि उत्तरांचल राज्य गठन के बाद वर्ष 2000 में उत्तरांचल को 688 व उत्तर प्रदेश को 5035 फार्मासिस्ट के पद आवंटित हुए थे। प्रदेश के अलग-अलग जिलों में नियुक्त फार्मासिस्टों के आंकड़े जुटाने पर यह संख्या 4889 निकलती है। अदालत को सौंपी जानकारी के मुताबिक वर्ष 2000 में उपलब्ध फार्मासिस्ट पदों और अक्टूबर 2014 तक हुए पद सृजन को मिलाकर 5561 फार्मासिस्ट उत्तर प्रदेश में होने चाहिए। इस तरह इन दोनों आंकड़ों में 672 पदों का अंतर है और इनका हिसाब नहीं मिल पा रहा है। अदालत ने इस तथ्य को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है कि वर्ष 2000 से पहले पदों के सृजन के संबंध में वित्त सहित किसी भी विभाग में कोई ब्योरा उपलब्ध नहीं है। नीतिगत फैसलों जैसे शासनादेश भी संभालकर नहीं रखे जाने को अदालत ने दुखद बताया है। यदि कोई वित्तीय अनियमितता हो जाए तो फैसला लेने में भी दिक्कत होगी।
अदालत ने मुख्य सचिव के संज्ञान में यह आदेश लाने का निर्देश देते हुआ कहा कि वे नीतिगत फैसलों वाले शासनादेशों को संभाल कर रखने के निर्देश जारी करें। भविष्य में ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो, यह भी सुनिश्चित करें। अदालत में इस मसले पर अगली सुनवाई 24 फरवरी को होनी है। उससे पहले ही मुख्य सचिव आलोक रंजन ने सभी प्रमुख सचिवों व सचिवों को व्यापक दिशा निर्देश जारी कर दिये हैं। अदालत के आदेश के अंशों को जोड़ते हुए जारी निर्देशों में कहा गया है कि सचिवालय नियमावली व प्रशासनिक सुधार अनुभाग के शासनादेशों में पद सृजन सहित अन्य अभिलिखित पत्रावलियों के रख-रखाव की व्यवस्था है। उक्त व्यवस्था का अनुपालन न हो पाने के कारण यह स्थिति उत्पन्न हुई है। उन्होंने सभी अभिलेखों का समुचित रखरखाव सुनिश्चित करने के साथ इसके लिए दायित्व निर्धारण के निर्देश भी दिये हैं।

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