Friday 4 December 2015

छह आयुर्वेदिक कालेजों की मान्यता समाप्त


-लखनऊ व वाराणसी के कालेजों को ही सीसीआइएम की मान्यता
-सरकारी कालेजों से बीएएमएस की 230 सीटें छिनीं, 90 बचीं
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डॉ.संजीव, लखनऊ
उत्तर प्रदेश में वर्षों से सरकारी उपेक्षा झेल रही आयुर्वेदिक शिक्षा का भविष्य खतरे में है। सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) ने आठ सरकारी आयुर्वेदिक कालेजों में छह की मान्यता समाप्त कर दी है। यहां बीएएमएस की 230 सीटें छिनने के बाद लखनऊ व वाराणसी की 90 सीटें ही बची हैं।
राज्य में लखनऊ, पीलीभीत, बांदा, झांसी, बरेली, मुजफ्फरनगर, इलाहाबाद व वाराणसी के आयुर्वेद कालेजों में बीएएमएस की 320 सीटें हैं। इन कालेजों को बीएएमएस के लिए सेंट्रल काउंसिल ऑफ इंडियन मेडिसिन (सीसीआइएम) से मान्यता मिलती है। सीसीआइएम की टीम हर वर्ष इन कालेजों का दौरा कर वहां शिक्षकों व अन्य संसाधनों का विश्लेषण कर उस वर्ष के लिए बीएएमएस की मान्यता देती है। इस पूरी प्रक्रिया के बाद हर हाल में एक अक्टूबर से शैक्षिक सत्र शुरू हो जाना चाहिए। इस वर्ष भी सीसीआइएम की टीम ने निरीक्षण किया किन्तु पहले चरण में एक भी आयुर्वेदिक कालेज को मान्यता योग्य नहीं माना। इसके लिए आयुर्वेद निदेशक को सीसीआइएम ने तलब भी किया। अनेक कोशिशों के बाद अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में सिर्फ वाराणसी की 40 व लखनऊ की 50 सीटों पर मान्यता मिली।
दो कालेजों को सशर्त मान्यता
सीसीआइएम टीम संतुष्ट तो लखनऊ व वाराणसी आयुर्वेदिक कालेजों के ढांचे से भी नहीं थी। वहां की मान्यता भी सशर्त मिली है। सीसीआइएम के आदेश में स्पष्ट कहा गया है कि इन दोनों कालेजों में संस्कृत प्रवक्ता की कमी से लेकर आधारभूत ढांचे में कमी पर भी सवाल उठाए गए हैं। इस पर सीसीआइएम ने 31 दिसंबर 2015 तक इन सभी कमियों को दूर करने का निर्देश दिया है, अन्यथा इन कालेजों की मान्यता भी समाप्त कर दी जाएगी।
शिक्षकों की कमी बड़ी समस्या
शिक्षकों की कमी के कारण कालेजों की मान्यता समाप्त हुई। मॉडर्न मेडिसिन के शिक्षक न मिलने से अधिक दिक्कत है। इस वर्ष तो इन सभी कालेजों में सत्र शून्य हो गया है। अब नए सिरे से मान्यता की कोशिश होगी।
-डॉ.सुरेश चंद्रा, आयुर्वेद निदेशक

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