Thursday 3 December 2015

यूनिसेफ संभालेगी नवजात शिशु देखभाल की कमान


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-राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की पहल, 12 मेडिकल कालेज करेंगे मदद
-आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण, डेढ़ माह में सात जांचों पर जोर
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डॉ.संजीव, लखनऊ : प्रदेश में नवजात शिशुओं की देखभाल की कमान अब यूनिसेफ संभालेगी। इस काम में 12 मेडिकल कालेजों की मदद भी ली जाएगी। इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की कार्यकारी समिति से हरी झंडी मिल गयी है। इसके अंतर्गत आशा कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण देने के साथ बच्चे के जन्म से डेढ़ माह के भीतर सात जांचों पर जोर दिया जाएगा।
नवजात शिशुओं की मौत उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे के लिए चुनौती बनी है। हालांकि वर्ष 2001 में नवजात मृत्यु दर 8.3 फीसद थी, जो 2011 में घटकर 5.3 फीसद हुई है, फिर भी इसे अत्यधिक मानकर काम किया जा रहा है। अब राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की पहल पर यूनिसेफ ने नवजात शिशु देखभाल का जिम्मा संभाला है। इसमें प्रदेश के 12 मेडिकल कालेजों का सहयोग भी लिया जाएगा। सरकार अभी अस्पतालों व घरों, दोनों स्तर पर नवजात शिशु की रक्षा के लिए कार्यक्रम चला रही है किन्तु यूनिसेफ घरों पर आधारित नवजात शिशु रक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करेगी। इसमें बच्चे के जन्म के बाद शुरुआती डेढ़ माह तक उनका विशेष ध्यान रखने की रणनीति बनाई गयी है। बच्चे के जन्म के साथ ही तीन, सात, 14, 21, 28 व 42 दिन का होने पर आशा कार्यकर्ता बच्चे की जांच करेंगी और स्वास्थ्य संबंधी कोई समस्या होने पर उसका समाधान सुनिश्चित कराएंगी।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की राज्य कार्यकारी समिति ने यूनिसेफ के साथ नवजात शिशु देखभाल कार्यक्रम के सुदृढ़ीकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दी है। मिशन निदेशक अमित घोष के मुताबिक इस कार्यक्रम के अंतर्गत मंडल स्तर पर मॉनीटङ्क्षरग के लिए यूनिसेफ द्वारा विशेष रूप में पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की जाएगी। उनके साथ मेडिकल कालेजों के कम्युनिटी मेडिसिन विभागों के शिक्षक व जूनियर डॉक्टर भी सक्रिय रहेंगे। ये लोग मिलकर आशा कार्यकर्ताओं को विशेष प्रशिक्षण देने के साथ हर माड्यूल की गुणवत्ता सुनिश्चित करेंगे। आशा कार्यकर्ताओं के गृह भ्रम के दौरान सहयोगात्मक पर्यवेक्षण के साथ रिकार्डिंग व रिपोर्टिंग के स्तर को मजबूत किया जाएगा, ताकि कमियों का विश्लेषण कर उनका निदान सुनिश्चित किया जा सके।
पांच फीसद से अधिक नवजात की होती मृत्यु
प्रदेश में पांच फीसद से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार कुल जन्म लेने वाले बच्चों में से 5.3 फीसद बच्चों की मृत्यु एक साल के भीतर हो जाती है। पांच साल का होते-होते 6.8 फीसद की जान चली जाती है। इनमें से जन्म के 28 दिन के भीतर 54 प्रतिशत व सात दिन के भीतर 41 प्रतिशत मौतें होती हैं। यही कारण है कि यूनिसेफ व स्वास्थ्य विभाग का पूरा जोर जन्म के तुरंत बाद बच्चों की देखरेख व उनकी जान बचाने पर है।

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