Saturday 12 December 2015

बदले नियम हुई सख्ती, फिर भी 11 लाख से ज्यादा संदिग्ध


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-दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति में साबित हुईं गड़बडिय़ां
-संस्थानों से माह भीतर मांगे गए जवाब, नहीं होगा कोई भुगतान
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डॉ.संजीव, लखनऊ
शुल्क प्रतिपूर्ति व छात्रवृत्ति मामले में नियम बदलने, खूब सख्ती के बावजूद प्रदेश में हुए आवेदनों में 11 लाख से ज्यादा संदिग्ध पाए गए हैं। तीस बिंदुओं पर पड़ताल कर संदिग्ध आवेदन चिह्नित किये गए हैं। इन सबको वापस भेजकर संबंधित संस्थानों से एक माह भीतर जवाब मांगा गया है। संदेहों का समाधान न होने पर इन संस्थानों का कोई भुगतान नहीं होगा।
दसवीं के बाद धनाभाव में पढ़ाई न रुकने देने के लिए दशमोत्तर छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना में तमाम गड़बडिय़ां व करोड़ों को घोटाला सामने आने के बाद न सिर्फ कई संस्थान काली सूची में डाले गए, बल्कि पूरी प्रक्रिया में खासी सख्ती कर दी गयी थी। नियम बदलने के बावजूद फर्जीवाड़ा करने वाले बाज नहीं आए और समाज कल्याण विभाग ने 30 बिंदुओं पर मामलों की जांच कराई तो कुल 33,37,461 आवेदनों में से 11,42,066 आवेदन संदिग्ध पाए गए। इनमें सर्वाधिक 2,42,772 आवेदन तो ऐसे हैं, जिन्होंने विभिन्न प्रोफेशनल पाठ्यक्रमों में दूसरे, तीसरे, चौथे या पांचवें वर्ष में प्रवेश लिया है। अब इन आवेदनों को वापस कर जिला समाज कल्याण अधिकारियों, पिछड़ा वर्ग कल्याण अधिकारियों व अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियों से कहा गया है कि वे संस्थानों से जवाब मांगें। 10 जनवरी तक ऑनलाइन जवाब दर्ज किये जाएं। इसके बाद गड़बड़ पाए गए विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति तो नहीं ही मिलेगी, दोषी संस्थानों पर भी कड़ी कार्रवाई होगी।
आय प्रमाणपत्रों का फर्जीवाड़ा
तमाम बंदिशों के बावजूद फर्जी आय प्रमाणपत्रों का बोलबाला रहा है। 94,987 आवेदकों के आय प्रमाणपत्र राजस्व आंकड़ों से मेल नहीं खाते तो 1,06,672 आवेदकों की आय राजस्व आंकड़ों से अलग निकली। 1,19,747 छात्र-छात्राओं ने एक ही आय प्रमाणपत्र क्रमांक का प्रयोग पिता का नाम बदल-बदल कर किया था। 757 मामलों में एक से अधिक आवेदनों में आय प्रमाणपत्र का क्रमांक समान होने के साथ पिता का नाम भी वही था, वहीं 1244 मामले ऐसे मिले, जिनमें एक ही आय प्रमाणपत्र क्रमांक के साथ पिता का नाम तीन बार से अधिक इस्तेमाल किया गया था।
फर्जी जाति व निवास प्रमाणपत्र
जांच में तीन लाख के आसपास फर्जी जाति व निवास प्रमाणपत्र भी मिले हैं। 1,00,868 जाति प्रमाणपत्र राजस्व अभिलेखों से नहीं मिले, वहीं 255 जाति प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल एक से अधिक बार और 1244 का इस्तेमाल तीन से अधिक बार हुआ, जबकि इनमें पिता का नाम एक ही दर्ज था। 1,61,894 मूल निवास प्रमाणपत्र राजस्व अभिलेखों से नहीं मिल सके। 15,172 ऐसे एक ही क्रमांक वाले जाति प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल बार-बार हुआ, जिनमें पिता का नाम एक ही दर्ज था।
रोल नंबर से पकड़ी गड़बड़ी
छानबीन के दौरान 95,848 विद्यार्थियों के हाईस्कूल के रोल नंबर यूपी बोर्ड के आंकड़ों से मेल नहीं खा रहे थे तो 38,036 के इंटरमीडिएट के रोल नंबर अलग थे। 886 ऐसे विद्यार्थी भी पकड़े गए जिन्होंने हाईस्कूल बोर्ड का रोल नंबर ही फर्जी भर दिया था।  6106 के शुल्क क्रमांक में गड़बड़ी मिली। 42,079 के रेकार्ड ही गायब थे, जबकि वे वर्ष 2014-15 में समान कोर्स में पढ़ाई का दावा कर रहे थे।

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