Saturday 7 November 2015

...ताकि कोई और अरविंद न करे सालों इंतजार


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-अंगदान अभियान-
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-उत्तर प्रदेश की नीति बनाते समय रखें अन्य राज्यों का ध्यान
-नए प्रत्यारोपण केंद्र स्थापित किये बिना नहीं चलेगा काम
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डॉ.संजीव, लखनऊ :
दिनांक : 28 अक्टूबर 2013
स्थान: संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान
राजधानी लखनऊ के आशियाना स्थित एलडीए कालोनी निवासी अरविंद कुमार की पहली डायलिसिस होने जा रही थी। पत्नी अर्चना खासी परेशान थीं। डॉक्टर ने कह दिया था कि उनके गुर्दे खराब हो चुके हैं। वे अपना गुर्दा देने को तैयार थीं किन्तु लंबी प्रतीक्षा सूची के कारण यह संभव नहीं हो पा रहा था। ...अब पूरे दो साल बाद अर्चना के चेहरे पर चमक है। उनका गुर्दा अब पति अरविंद को लग चुका है। पर दो साल का यह इंतजार व दौड़-धूप यादकर आज भी उनकी आंखें नम हो उठती हैं। वे बस इतना ही कहती हैं कि कुछ ऐसा हो, जिससे कोई और अरविंद इस तरह इंतजार को विवश न हो।
बीते माह हुए प्रत्यारोपण के बाद अर्चना शुक्रवार को एसजीपीजीआइ से पति की छुïट्टी कराकर घर ले आयीं। वे बताती हैं कि 2012 में जब उनके पति के गुर्दे में समस्या पता चली और काफी इलाज के बावजूद जब 2013 में प्रत्यारोपण की नौबत आ गयी तो इंतजार के साथ डायलिसिस के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था। वे दिल्ली भी गयीं किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। यह स्थिति केवल अरविंद की नहीं है। उत्तर प्रदेश में अंगदान को लेकर अब तक हुई ढिलाई के कारण हजारों ऐसे अरविंद प्रत्यारोपण के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। यह स्थिति पूरे देश में नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तर प्रदेश में नीति बनाते समय देश के अन्य राज्यों की स्थितियों को ध्यान में रखना होगा। देश के कई राज्यों में न सिर्फ नीतियां निर्धारित हैं, बल्कि प्रत्यारोपण के पक्ष में भी हैं। तमिलनाडु में अंग प्रत्यारोपण के लिए एक सूची बनी हुई है। लोगों के अंग प्रत्यारोपण कार्ड बने हुए हैं। जैसे ही कोई अंग उपलब्ध होता है, उस सूची के आधार पर आवंटन हो जाता है और फिर 40 में से जिस केंद्र पर प्रत्यारोपण के लिए पंजीकरण होता है, वहां प्रत्यारोपण करा दिया जाता है। केरल में भी इसी नीति पर काम हो रहा है और हाल ही में राजस्थान ने भी इस नीति को अंगीकार किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि नए प्रत्यारोपण केंद्र विकसित किये बिना काम नहीं चलेगा। मेडिकल कालेज स्तर पर कोशिशें करनी होंगी। अलग-अलग अंगों को लेकर विशेष प्रत्यारोपण केंद्र भी स्थापित करने होंगे।
भारत में दुनिया का पहला प्रत्यारोपण विश्वविद्यालय
एक ओर उत्तर प्रदेश में प्रत्यारोपण के पुख्ता बंदोबस्त नहीं हो पा रहे हैं, वहीं दुनिया का पहला प्रत्यारोपण विश्वविद्यालय खोलने का गौरव भारत को ही मिला है। इसी वर्ष मई में अहमदाबाद में शुरू हुई गुजरात यूनिवर्सिटी ऑफ ट्रांसप्लांटेशन साइंसेज में अंग प्रत्यारोपण से जुड़े सुपरस्पेशियलिटी मेडिकल व पैरामेडिकल पाठ्यक्रमों की पढ़ाई होती है। यहां प्रत्यारोपण को आम जनमानस के लिए सुलभ व सस्ता बनाने पर शोध भी किये जा रहे हैं।
बनाए जाएं अंगदान कार्ड
इंडियन सोसायटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के सचिव डॉ.नारायण प्रसाद प्रदेश सरकार द्वारा अंग प्रत्यारोपण नीति के लिए कानून बनाने के फैसले का स्वागत करते हुए कहते हैं कि इसके साथ ही अंगदान कार्ड बनाने की पहल भी होनी चाहिए। इससे जो लोग अंगदान करना चाहते हैं, वे आगे आ सकेंगे। सभी अस्पतालों को जोड़कर ऑनलाइन प्रणाली विकसित की जाए, जिससे अंगदान व प्रत्यारोपण की प्रक्रिया सुगम हो सके। जिस मरीज को अंग प्रत्यारोपण हो रहा है, उसके अलावा अंगदान करने वालों व उनके परिवारीजन की चिंता का प्रावधान भी नीति का हिस्सा होना चाहिए।

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