Tuesday 17 November 2015

नवजातों को बचाने की मुहिम

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-14 से 21 नवंबर तक मनाया जा रहा नवजात शिशु सप्ताह
-शिशु मृत्यु दर घटाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : तमाम कोशिशों के बावजूद प्रदेश में नवजात शिशु पूरी तरह सुरक्षित नहीं। शिशु मृत्यु दर घटाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। इससे निपटने के लिए अब 14 से 21 नवंबर तक नवजात शिशु सप्ताह के रूप में विशेष मुहिम चलाकर जागरूकता व बच्चों की चिंता की पहल की गयी है।
मुख्यमंत्री की पहल पर स्वास्थ्य विभाग वर्ष 2015 को मातृ-शिशु कल्याण वर्ष के रूप में मना रहा है। इसमें भी नवजात शिशु की मृत्यु दर घटाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती बना है। संयुक्त राष्ट्र ने भी वर्ष 2015 के अंत तक नवजात शिशुओं की मौत पर नियंत्रण का लक्ष्य भारत को दिया है, जो उत्तर प्रदेश के लिए भी चुनौती है। अब स्वास्थ्य विभाग ने एक सप्ताह तक विशेष मुहिम के रूप में नवजात शिशु रक्षा के लिए जागरूकता व सक्रियता अभियान शुरू किया है। इसे गांव में आशा व एएनएम स्तर तक और संस्थागत रूप से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के स्तर तक संचालित किया जाएगा।
बनेंगे न्यू बॉर्न केयर कॉर्नर
तय हुआ है कि जिन शिशुओं की स्थिति अत्यधिक गंभीर है, उनके लिए प्रसूति की सुविधा वाले सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर न्यू बॉर्न केयर कॉर्नर बनाए जाएंगे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एक स्टाफ नर्स को प्रभारी बनाकर नवजात संरक्षा इकाई सक्रिय की जाएगी। हर जिला चिकित्सालय में नवजात शिशु त्वचा रक्षा इकाई गठित होगी, ताकि बच्चों की त्वचा संबंधी समस्याओं का त्वरित समाधान हो सके। ढाई किलो से कम वजन वाले शिशुओं के लिए विशेष वार्ड व बेड आरक्षित कर कंगारू मदर केयर की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
घर जाएंगी आशा-एएनएम
आशा व एएनएम को बार-बार घर तक भेजने की मुहिम शुरू की गयी है। अस्पताल में प्रसव होने पर छह बार और घर में प्रसव की स्थिति में सात बार घर जाकर आशा कार्यकर्ता जच्चा-बच्चा की सेहत पर नजर रखेंगी। इसी तरह एएनएम भी घर जाएंगी।
पांच साल भी नहीं जीते नौ फीसद बच्चे
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में जन्म लेने वाले नौ फीसद बच्चे पांच साल के भी नहीं हो पाते हैं। इनमें नवजात शिशुओं की संख्या आधे से अधिक है। जन्म के एक वर्ष के भीतर 6.8 फीसद बच्चों की मृत्यु हो जाती है, वहीं 4.9 फीसद बच्चों की मृत्यु तो जन्म लेने के एक माह भीतर ही हो जाती है। इनमें से बड़ी संख्या कम वजन के साथ पैदा हुए बच्चों की होती है।

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