Friday 9 October 2015

मरीजों इंतजार करो, डॉक्टर साहब नहीं आएंगे


आयुर्वेद को चाहिए संजीवनी
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-न पढ़ाई के पुख्ता इंतजाम, न हो पा रहा इलाज

डॉ.संजीव, लखनऊ
यह राजधानी का आयुर्वेदिक मेडिकल कालेज का बाह्यï रोगी विभाग है। यहां ओपीडी का समय सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक है। गुरुवार की सुबह नौ बजे तक मरीजों की भीड़ जमा हो चुकी थी किंतु एक भी डॉक्टर यहां मौजूद नहीं था।
यह स्थिति केवल मेडिकल कालेज की ही नहीं है। आयुर्वेद विभाग के अस्पतालों का भी यही हाल है। राजाजीपुरम में चार बेड का आयुर्वेद चिकित्सालय भगवान भरोसे हैं। वहां डॉक्टर 15 दिन से छुट्टी पर हैं किंतु किसी दूसरे की नियुक्ति नहीं की गयी है। मरीज भी लौट जाते हैं। यह स्थिति तब है जबकि पारंपरिक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए केंद्र सरकार ने अलग से आयुष मंत्रालय तक स्थापित किया है। प्रदेश में भी आयुष मिशन के नाम पर कई प्रयासों का दावा किया जा रहा है किंतु ये सारी कोशिशें आयुर्वेद के मामले में विफल साबित हो रही हैं। अधिकारियों को आयुष मिशन से मिलने वाली धनराशि का इंतजार है तो डॉक्टर भी गंभीर नहीं हैं। पहले ही आयुर्वेद चिकित्सकों की कमी है, और जो हैं भी, वे प्राइवेट प्रैक्टिस पर फोकस कर रहे हैं।
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500 डिस्पेंसरी फार्मासिस्ट भरोसे
प्रदेश में आयुर्वेद विभाग की दो हजार डिस्पेंसरी हैं। इसके विपरीत चिकित्सकों की कुल संख्या ही 1600 है। डिस्पेंसरी पर प्रभावी चिकित्सक संख्या 1500 होने के कारण शेष 500 डिस्पेंसरी फार्मासिस्ट के भरोसे चल रही हैं। यहां फार्मासिस्ट ही सप्ताह में कुछ दिन पहुंचते हैं और मरीजों को दवा देकर विदा कर देते हैं। जिन डिस्पेंसरी में डॉक्टर तैनात हैं, वहां भी वे नियमित नहीं जाते हैं। कुछ जगह फार्मासिस्ट व डॉक्टर ने आपस में समझौता कर लिया है और वे सप्ताह में तीन-तीन दिन जाकर काम चला रहे हैं।
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कालेजों में पढ़ाई का संकट
मुजफ्फर नगर, बरेली, पीलीभीत, लखनऊ, बांदा, इलाहाबाद, बनारस व झांसी में सरकारी आयुर्वेदिक कालेज हैं। इनमें चिकित्सकों को कमी के चलते पढ़ाई का संकट पैदा हो गया है। हालात ये हैं कि एक भी कालेज को मान्यता न मिलने के कारण सीपीएमटी की शुरुआती दो काउंसिलिंग में वे बीएएमएस को शामिल ही नहीं किया जा सका। बमुश्किल बनारस की मान्यता मिल सकी है। इसके पीछे शिक्षकों की कमी मूल समस्या मानी जा रही है। अधिकारियों के मुताबिक लोक सेवा आयोग में प्रोफेसर के 33, रीडर के नौ व लेक्चरर के 34 पदों के लिए अधियाचन भेजा गया है जो कि लंबित है। परास्नातकों की संख्या कम होने के कारण संविदा पर भी शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं।
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फिर भी निजी कालेज हैं आगे
सरकारी क्षेत्र के आठ मेडिकल कालेजों से निजी क्षेत्र के 14 मेडिकल कालेज न सिर्फ जोरदार मुकाबला कर रहे हैं, बल्कि कई मोर्चों पर तो आगे भी हैं। आयुर्वेद में परास्नातक उपाधि (एमडी) की पढ़ाई की सुविधा सिर्फ दो सरकारी आयुर्वेदिक कालेजों में हैं। इनमें छह सीटें पीलीभीत व 14 लखनऊ में हैं। इसके विपरीत तीन प्राइवेट कालेजों में परास्नातक की 55 सीटें हैं। यही कारण है कि जहां सरकारी क्षेत्र में कालेजों की संख्या आठ पर सिमट गयी है, वहीं निजी क्षेत्र में आठ नए कालेजों को मंजूरी मिल चुकी है और 13 कालेजों के लिए शासन स्तर पर अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी हो चुका है।
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प्रबंधन करने में सफल
आयुर्वेद निदेशक डॉ.सुरेश चन्द्रा का कहना है कि यह सच है कि विभाग चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है, किंतु हम प्रबंधन करने में सफल हैं। कुछ डिस्पेंसरी आपस में जोड़ दी गयी हैं, तो कुछ में सप्ताह में तीन-तीन दिन डॉक्टर भेजने की व्यवस्था की गयी है ताकि मरीजों को असुविधा न हो। कालेजों को भी एक-एक कर मान्यता मिलनी शुरू हुई है। लोकसेवा आयोग से नियुक्तियां होते ही शिक्षकों का संकट भी समाप्त हो जाएगा।

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