Thursday 10 September 2015

प्रदेश में एक लाख दवा दुकानें अवैध


--नियमों की लाचारी--
-सिर्फ तीस हजार फार्मेसिस्टों के सहारे सवा लाख फुटकर दुकानें
-सरकारी आंकड़ों में महज 71,400 दुकानें ही कराई गयीं पंजीकृत
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डॉ.संजीव, लखनऊ
नियमों की लाचारी से उत्तर प्रदेश में तकरीबन एक लाख दवा की दुकानें अवैध ढंग से चल रही हैं। मानकों का पालन करते हुए इनमें फार्मेसिस्ट तो हैं ही नहीं, लगभग आधी दुकानें बिना लाइसेंस ही चल रही हैं। हाल ही में दवा दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण ऑनलाइन करने की पहल के बाद यह तथ्य सामने आया।
प्रदेश में दवा की दुकानों के लिए खाद्य एवं औषधि प्राधिकारी से लाइसेंस लेना तो अनिवार्य है ही, ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट के तहत हर फुटकर दवा की दुकान में फार्मेसिस्ट का होना भी जरूरी है। लाइसेंस लेने के साथ ही फार्मेसिस्ट का पूरा ब्योरा भी जमा करना होता है। हर पांच साल में नवीनीकरण कराते समय भी दवा दुकानों में कार्यरत फार्मेसिस्ट की जानकारी देनी होती है। इस फार्मेसिस्ट का उत्तर प्रदेश फार्मेसी काउंसिल में पंजीकृत होना भी जरूरी है। खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने 20 जून 2015 को आदेश जारी कर दवा दुकानों के नवीनीकरण के लिए ऑनलाइन आवेदन अनिवार्य कर दिया। इसके बाद से ही यह तथ्य सामने आने शुरू हुए हैं कि राज्य में अवैध दवा दुकानों की भरमार है और खाद्य एवं औषधि प्रशासन भी इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।
आंकड़ों के अनुसार 75 जिलों में सवा लाख से अधिक दवा की दुकानें हैं। इसके विपरीत महज 71,400 दुकानों को लाइसेंस जारी हुए हैं। लगभग 60 हजार दुकानें तो बिना लाइसेंस ही चल रही हैं। इन सभी दुकानों में फार्मेसिस्ट होने चाहिए, किन्तु उत्तर प्रदेश में फार्मेसिस्ट ही इतने नहीं हैं। फार्मेसी काउंसिल में 60 हजार फार्मेसिस्ट पंजीकृत हैं। इनमें से 15 हजार सरकारी नौकरी में हैं। दस हजार फार्मेसिस्ट हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, हिमांचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, सिक्किम व मुंबई आदि दूसरे प्रदेशों के दवा कारखानों में नौकरी कर रहे हैं। लगभग पांच हजार फार्मेसिस्ट या तो सेवानिवृत्त हो चुके हैं या उनकी मृत्यु हो चुकी है। इस तरह दवा दुकानों के लिए 30 हजार फार्मेसिस्ट ही बचते हैं। शेष तकरीबन एक लाख दवा दुकानें ड्रग एंड कास्मेटिक एक्ट का उल्लंघन कर बिना फार्मेसिस्ट के ही चल रही हैं। ऐसे में ये सभी दुकानें अवैध हैं।
एक फार्मेसिस्ट, कई दुकानें
दवा दुकानों के ऑनलाइन नवीनीकरण की शुरुआत से पता चला कि एक ही फार्मेसिस्ट का नाम कई दुकानों पर चढ़ा हुआ है। अब ऑनलाइन नवीनीकरण में फार्मेसिस्ट का पंजीकरण क्रमांक भरना होता है। जैसे ही दूसरी दुकान में पंजीकरण क्रमांक दिखेगा, ओवरलैपिंग होगी और पकड़ जाएगा। इसी कारण तमाम मामले पकड़े गए और अवैध दुकानों का पता चला।
बंद होंगी ऐसी दुकानें
औषधि नियंत्रक एके मल्होत्रा ने भी स्वीकार किया कि हर दुकान पर अलग फार्मेसिस्ट होना चाहिए किन्तु वह नहीं हैं। ऐसा न करना सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों की अवमानना भी है। ऑनलाइन नवीनीकरण व लाइसेंस पंजीकरण से इस स्थिति का खुलासा हो रहा है। अब ऐसी सभी दवा दुकानें बंद होंगी और ऐसी दुकान चलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।
दुकानदार भी हैं मजबूर
इसे नियमों की लाचारी ही कहेंगे कि दुकानदार भी फर्जीवाड़ा करने पर मजबूर हैं। खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग फार्मेसिस्ट का प्रमाणपत्र लगाने पर मजबूर करता है और इतने फार्मेसिस्ट हैं नहीं कि अलग-अलग दुकानों पर वे उपलब्ध हो सकें। ऐसे में फार्मेसिस्ट भी दो हजार रुपये महीने तक अपना प्रमाणपत्र किराए पर देते हैं। हाल ही में सख्ती होने से फार्मेसिस्टों ने किराया बढ़ा दिया है।

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