Wednesday 2 September 2015

शुल्क प्रतिपूर्ति गड़बड़ी में पीछे नहीं निजी विश्वविद्यालय

-समाज कल्याण विभाग की पड़ताल में सामने आए तमाम मामले
-कई विश्वविद्यालय चिह्नित कर कठोर कार्रवाई की हो रही तैयारी
राज्य ब्यूरो, लखनऊ
मुरादाबाद की आइएफटीएम यूनिवर्सिटी के छात्र गौरव ने शुल्क प्रतिपूर्ति के लिए अपने आवेदन में जो अनुक्रमांक भरा वह निर्मला नाम की छात्रा का था। इसी तरह वीरेंद्र पाल सिंह द्वारा भरा गया अनुक्रमांक छवि नाम की छात्रा का था। यह दो मामले तो बानगी भर हैं। प्रदेश में तेजी से खुले निजी विश्वविद्यालय शुल्क प्रतिपूर्ति घोटाले में भी कदम से कदम मिलाते नजर आ रहे हैं। समाज कल्याण विभाग की जांच में ऐसे तमाम तथ्य सामने आए हैं।
बीते दिनों शासन स्तर पर निजी विश्वविद्यालयों की पड़ताल कराने पर ऐसे तमाम मामले प्रकाश में आए हैं। पता चला कि आइएफटीएम यूनिवर्सिटी में ही पढऩे वाले अनुसूचित जाति के पुष्पेंद्र कुमार और पुष्पकुमार ने सामान्य वर्ग के गंभीर सिंह व लोकेंद्र शर्मा के हाई स्कूल के रोल नं अपने फार्म में भर दिये। मोनाड यूनिवर्सिटी हापुड़ व वेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी अमरोहा में क्रमश: 65 व 50 फीसदी मामले गलत पाए गए। वर्ष 2014-15 के आंकड़ों को ही देखें तो इन विश्वविद्यालयों के 418 आवेदन पत्रों के आय प्रमाणपत्र राजस्व परिषद के आंकड़ों से नहीं मिलते तो 170 की आय नहीं मिलती। 643 अभ्यर्थियों के जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए। हालात ये थे कि केवल मोनाड यूनिवर्सिटी हापुड़ में ही 3632 मामले संदिग्ध मिले। इस मसले पर मुख्य सचिव के समक्ष प्रतिवेदन में भी स्वीकार किया गया कि निजी विश्वविद्यालयों ने छात्रवृत्ति व शुल्क प्रतिपूर्ति योजना का दुरुपयोग किया है। इन सभी को चिह्नित कर उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की तैयारी हो रही है।
ऐसे-ऐसे मामले
-छात्राओं के अनुक्रमांक को अपना बताकर छात्रों ने किये आवेदन
-640 आवेदकों ने पिता का नाम बदलकर लगाया आय प्रमाणपत्र
-109 विद्यार्थियों ने एक ही क्रमांक का जाति प्रमाण पत्र प्रयोग किया
-406 छात्र-छात्राओं ने सीधे द्वितीय, तृतीय या चुतर्थ वर्ष में प्रवेश दिखाया
-721 अभ्यर्थियों ने मानक 60 प्रतिशत से कम अंकों के बावजूद भरा फार्म
-250 विद्यार्थियों ने न्यूनतम शैक्षिक योग्यता न होने के बाद भी लिया प्रवेश
अराजक फीस निर्धारण
गड़बड़ी करने वाले विश्वविद्यालयों ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए तर्क रखा कि शासन द्वारा निर्धारित शुल्क व उनके शुल्क में काफी अंतर है। जिससे उनके संचालन पर असर पड़ रहा है। इस पर प्रमुख सचिव ने स्पष्ट व्यवस्था दी है कि निजी क्षेत्र के जो संस्थान स्वयं शुल्क निर्धारित करते हैं, उनके छात्र-छात्राओं को प्रदेश के अन्य निजी क्षेत्र के मान्यता प्राप्त संस्थानों के लिए शासन से निर्धारित शुल्क को स्वीकार करना होगा। संबंधित निजी विश्वविद्यालय के अपने शुल्क व निजी संस्थान के शासन द्वारा निर्धारित शुल्क में जो शुल्क कम होगा, उक्त राशि की ही प्रतिपूर्ति की जाएगी।

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