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जिद्दी डॉक्टर, लाचार प्रशासन
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-एक ही जिले में बीस वर्ष से ज्यादा समय से डटे
-कई ने तो पूरी नौकरी ही बिना जिला छोड़े पार की
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डॉ.संजीव, लखनऊ :
केस एक : डॉ.हेमलता यादव लखनऊ में 26 वर्षों से हैं। 30 दिसंबर 1989 को उनकी तैनाती सआदतगंज हेल्थ पोस्ट में हुई। छह जनवरी 2005 तक वहां रहने के बाद पांच महीने के लिए राजधानी में ही सहायक निदेशक बनीं और चार जून 2005 से अब वह नाका नगरीय परिवार कल्याण केंद्र में मेडिकल अफसर हैं।
केस दो : डॉ.अजय कुमार साहनी कॅरियर के शुरुआती चार साल तो प्रतापगढ़ व रायबरेली में रहे किन्तु 23 अगस्त 1995 को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सरोजनी नगर में ज्वाइन करने के बाद फिर यहां से नहीं गए। संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, राज्य ब्लड बैंक, लोकबंधु राजनारायण अस्पताल में तैनाती के बाद इस समय अलीगंज स्वास्थ्य केंद्र में तैनात हैं।
सरकार चाहे जिस दल की हो, दूर-दराज के इलाकों में डॉक्टर नहीं भेज पा रही। सचिवालय में बैठे अफसर डाक्टरों पर सख्ती कर नहीं पाते और डाक्टर हैं कि छोटे शहरों या गांवों में जाने को तैयार नहीं। कुछ और उदाहरण देखें-डॉ. किरन गर्ग सात मार्च 1991 को लखनऊ के राजा बाजार हेल्थ पोस्ट में मेडिकल अफसर बनकर आयीं। वहां पांच माह रहीं और तब से पहले ऐशबाग और फिर 1999 से पुलिस अस्पताल में तैनात हैं। डॉ.निशा सचान ने कॅरियर के शुरुआती छह साल तो अमेठी के मुसाफिरखाना में काटे किन्तु सात अगस्त 1991 को राजधानी आयीं तो फिर यहीं की होकर रह गयीं। इसी तरह डॉ.नीना उपाध्याय ने 30 अक्टूबर 1993 को लखनऊ के वीरांगना अवंतीबाई अस्पताल में ज्वाइन किया और उसके बाद से महानगर, केजीएमयू होते हुए अब अलीगंज में तैनात हैं।
लखनऊ में ज्यादा मारामारी होने के कारण कुछ लोग आसपास के जिलों में तैनाती करा लेते हैं। डॉ.राजेश गुप्ता व डॉ.कमलेश चंद्र 17 वर्षों से, डॉ.वासुदेव सिंह, डॉ.भुवन चंद्र पंत व डॉ.अजय तिवारी 16 वर्षों से, डॉ.जितेंद्र कुमार, डॉ.अरुण कुमार व डॉ.एके मिश्रा 15 वर्षों से सीतापुर में तैनात हैं। यही स्थिति अन्य महानगरों की भी है। डॉ.गीता यादव सात जुलाई 2004 से कानपुर के डफरिन अस्पताल में तैनात हैं। इससे पहले वे 25 जुलाई 1997 से छह जुलाई 2004 तक पड़ोस के उन्नाव में तैनात रही थीं। इसी तरह 20 फरवरी 1999 को शामली से कॅरियर शुरू करने वाले डॉ.विनय कुमार वहां महज डेढ़ साल रहे और फिर चार अगस्त 2000 को मेरठ में ज्वाइन किया। तब से अब तक 15 साल से वे मेरठ में ही तैनात हैं। 21 जून 2003 से इलाहाबाद के जिला अस्पताल में तैनात डॉ.अभय राज सिंह का पूरी चिकित्सकीय करियर वहीं बीत गया है। जिला अस्पताल से पहले एक अक्टूबर 2002 से 21 जून 2003 तक वे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रामनगर में तैनात रहे थे।
नियम छह साल में तबादले का
तबादला नियमों के अनुसार कोई डॉक्टर एक शहर में छह साल से अधिक व एक मंडल में नौ साल से अधिक नहीं रह सकता जबकि आंकड़े बताते हैं कि कई डॉक्टर पूरी नौकरी एक ही शहर में बिता देते हैं। अधिक दबाव पड़ा तो आसपास के जिले में तबादला कराकर एक गैप क्रियेट कराया और फिर वापस उसी जिले में आ गए।
बड़े शहरों की सिफारिशें बड़ी
अधिकारियों के मुताबिक सर्वाधिक मारामारी राजधानी लखनऊ में रहने के लिए है। कानपुर, इलाहाबाद, मेरठ, वाराणसी, आगरा जैसे जिलों में एक बार पैठ बना चुके डॉक्टर बड़े नेताओं व अफसरों के फैमिली डॉक्टर बन जाते हैं। इसके बाद तो इन्हें हटाना मुश्किल। यही अफसर प्रमोशन के बाद राजधानी में बड़ी भूमिका में होते हैं, जबकि नेता भी समय के साथ मजबूत होकर पैरवी करने लगते हैं।
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दस फीसद तबादले की मजबूरी
एक वर्ष में दस प्रतिशत डॉक्टरों के तबादले ही किये जा सकते हैं। वर्षों से एक ही जिले में रुके चिकित्सकों के तबादले किये गए हैं, फिर भी अभी पूरी तरह से मानकों के अनुरूप नहीं हो सके हैं।
-अरविन्द कुमार, प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य)
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