Tuesday 22 September 2015

दवा न खून, बस मौत आसानी से


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सेहत का सच
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-खोखले साबित हो रहे दवा और खून मुफ्त देने के दावे
-इस साल अब तक 207 मौतों के बावजूद व्यवस्था नहीं सुधरी
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डॉ.संजीव, गोरखपुर
शाम के सात बजे हैं। एक बुजुर्ग आइसीयू से कपड़े में लिपटी एक बच्ची को लेकर बाहर निकलते हैं। बाहर खड़ी महिलाएं जैसे ही यह दृश्य देखती हैं, चीखें गूंज उठती हैं। इस क्रंदन के पीछे दोहरा दर्द है हालांकि गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कालेज के वार्ड 12 के लिए यह सामान्य घटना है...रोज की है पर क्या करें वे बेचारे परिवार वाले जिनकी इस बच्ची को यह अस्पताल दवाएं और खून तक मुहैया न करा सका।
गोरखपुर व आसपास के जिलों में इंसेफ्लाइटिस पुरानी समस्या है। हर साल सैकड़ों लोग इस बीमारी की चपेट में आकर जान गंवा देते हैं। हर बार की तरह इस बार भी शासन से प्रशासन तक बड़े-बड़े दावे किये गए किन्तु जमीनी हकीकत उल्टी है। मुख्यमंत्री इंसेफ्लाइटिस के इलाज में लापरवाही न होने देने की बात करते हैं, सरकार दवा और खून मुफ्त देने का दावा करती है, प्रमुख सचिव मेडिकल कालेज का निरीक्षण करते हैं, किन्तु व्यवस्था है कि सुधरने का नाम नहीं लेती।
कुशीनगर के हाटा बाजार क्षेत्र के महरथा निवासी दुलारे की नातिन को पिछले हफ्ते तेज बुखार आया। उसे लेकर वह कुशीनगर जिला अस्पताल पहुंचे तो उन्हें गोरखपुर मेडिकल कालेज भेज दिया गया। यहां इंसेफ्लाइटिस के विशेष वार्ड में बच्ची को भर्ती करा दिया गया। चार दिन इलाज के बाद बच्ची की मौत हो गयी किन्तु इस बीच दुलारे व उनके परिवारीजन ने सारे दुख देख लिये। अस्पताल पहुंचने के बाद उन्हें बाजार से दवाएं लाने के लिए नियमित पर्चे पकड़ा दिये जाते। मृत्यु से एक दिन पहले खून चाहिए था पर वह भी मेडिकल कालेज ब्लड बैंक में नहीं मिला। इसके लिए उन्हें बाबा गोरक्षनाथ ब्लड बैंक जाना पड़ा।
सिर्फ दुलारे को ही इस स्थिति का सामना नहीं करना पड़ रहा। देवरिया के सर्वेश गुप्ता पर्चा लेकर गेट के बाहर भागते हुए मिले। गोरखपुर के ही लक्ष्मीगंज निवासी अरविंद का पुत्र कृष्णा भी भर्ती है। अरविंद के मुताबिक पहले दिन तो कुछ दवाएं मिलीं, किन्तु अब ज्यादातर दवाओं के लिए उन्हें बाहर भेज दिया जाता है। उधर, मेडिकल कालेज प्रशासन के दावे बिल्कुल विपरीत हैं।
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समस्या का समाधान जरूर होगा
यदि कोई गड़बड़ कर रहा है तो उन तक पहुंचें, समस्या का समाधान जरूर होगा। प्रयासों का ही नतीजा है कि इंसेफ्लाइटिस से मौतों में कमी आई है। पिछले वर्ष अब तक 397 लोगों की जान गयी थी, इस वर्ष 207 लोगों की ही मौत हुई है। दवा व खून न मिलने की जांच होगी और दोषी को दंडित किया जाएगा।
-डॉ.आरपी शर्मा, प्राचार्य, मेडिकल कालेज
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रिपोर्ट का इंतजार
हर मरीज को तुरंत भर्ती करने के सरकारी दावे का भी गोरखपुर मेडिकल कालेज में मजाक उड़ाया जा रहा है। बिहार के गोपालगंज से राजेश यादव अपनी बेटी अंजनी को लेकर यहां पहुंचे। वहां की रिपोर्टों के आधार पर इंसेफ्लाइटिस होने के कारण उन्हें सीधे इंसेफ्लाइटिस वार्ड रेफर किया गया। वह पूरे दिन परेशान रहे किन्तु बेटी को भर्ती नहीं किया गया। डॉक्टरों का कहना था कि पहले इंसेफ्लाइटिस की एक और जांच होगी।
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अधिकारियों के आने पर सफाई
इंसेफ्लाइटिस वार्ड के आसपास सफाई कई दफा अफसरों के दौरों के मद्देनजर ही होती है। सघन चिकित्सा कक्ष के बाहर कोने पर काफी मेडिकल कचरा जमा रहता है। खुले में कचरा फेंकना तो आम बात है। तीमारदारों ने बताया कि जिस दिन किसी अधिकारी को आना होता है, उस दिन तो ताबड़तोड़ सफाई शुरू हो जाती है। उसके अलावा स्थिति जस की तस।
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