Wednesday 16 September 2015

मेडिकल मैनेजर दिखाएंगे मरीजों को राह



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-आजमगढ़, गोंडा, रायबरेली, सीतापुर एवं हरदोई में बाल सघन चिकित्सा कक्ष
-नर्सों की भर्ती के लिए बदलेंगे नियम, हर मंडलीय अस्पताल में डायलिसिस विंग
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राज्य ब्यूरो, लखनऊ : आप सरकारी अस्पताल में पहुंचकर इलाज के लिए भटक रहे हैं तो चिंता न करें। आप अस्पताल में तैनात मेडिकल मैनेजर के पास जाएं, वह राह दिखाएंगे। जल्द ही सरकारी अस्पतालों में ऐसी स्थितियां सुलभ कराने के निर्देश मुख्य सचिव आलोक रंजन ने दिए हैं।
मंगलवार को स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में मुख्य सचिव ने कहा कि ये मेडिकल मैनेजर न सिर्फ सौम्य तरीके से मरीजों व तीमारदारों की समस्याओं का समाधान करेंगे बल्कि चिकित्सकीय परीक्षण से लेकर जांच आदि तक की चिंता करेंगे। उन्होंने अधिकारियों व जिलाधिकारियों को अस्पतालों के नियमित निरीक्षण करने और इसके लिए बाकायदा सूची बनाने के निर्देश दिए हैं। प्रमुख सचिव से गोरखपुर से निरीक्षण की शुरुआत करने को कहा गया है। 17 जनपदों में निर्माणाधीन रोगी आश्रय स्थलों का निर्माण समय पर पूरा कराने को कहा।
मुख्य सचिव ने कहा कि नर्सों के रिक्त पद भरने के लिए आवश्यकता के अनुरूप सेवा नियमावली में परिवर्तन भी किया जा सकता है। अस्पतालों में सभी परीक्षण व जांचें 24 घंटे होनी चाहिए। 84 अस्पतालों में आयुष विंग स्वीकृत हुई थीं, उनमें से 57 पूरी हो चुकी हैं। शेष भी समयबद्ध ढंग से पूरी कराई जाएं। उन्होंने कहा कि मंडलीय अस्पतालों में एक माह के भीतर डायलिसिस केंद्र शुरू कराए जाएं। आजमगढ़, गोंडा, रायबरेली, सीतापुर एवं हरदोई के जिला अस्पतालों में बाल सघन चिकित्सा कक्ष का निर्माण गुणवत्ता के साथ कराया जाए।
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इंसेफ्लाइटिस पर सतर्कता
बैठक में प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य) अरविंद कुमार ने बताया कि इंसेफ्लाइटिस व दिमागी बुखार के लिए संवेदनशील 17 जिलों के जिला चिकित्सालयों में प्रयोगशालाएं चालू हो चुकी हैं। अप्रैल से जुलाई तक 37 जिलों में सात लाख से अधिक बच्चों को इंसेफ्लाइटिस का टीका लगाया जा चुका है। प्रदेश में साढ़े आठ लाख से अधिक वैक्सीन उपलब्ध हैं। गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, बस्ती, सिद्धार्थनगर एवं संतकबीरनगर के 36 ब्लाकों में 15 से 65 वर्ष तक की आयु वर्ग के लोगों को इंसेफ्लाइटिस का टीका लगाने के लिए 47 लाख वैक्सीन उपलब्ध कराई जा रही है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष दिमागी बुखार के रोगियों की संख्या घटी है। मृत्युदर भी पिछले वर्ष के 19.80 प्रतिशत से घटकर 13.32 प्रतिशत रह गयी है।

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