Saturday 12 September 2015

20 साल में भी न तैयार हो सकेंगे जरूरतभर फार्मासिस्ट


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-नियमों की लाचारी-
-हर साल 163 संस्थानों में प्रवेश लेते हैं 10,520 विद्यार्थी
-वर्ष 1988 में थे केवल दस संस्थान, 250 छात्र-छात्राएं
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डॉ.संजीव, लखनऊ : प्रदेश में फार्मासिस्ट की जरूरत के अनुपात में उनकी पढ़ाई का इंतजाम नहीं है। ढाई दशक में तेजी से नए कालेज खुलने के बावजूद स्थितियां ऐसी हैं कि बीस साल में भी जरूरी फार्मासिस्ट तैयार नहीं हो सकेंगे।
हर मेडिकल स्टोर में फार्मासिस्ट की अनिवार्यता के अलावा तेजी से खुलते अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों में भी फार्मासिस्ट की जरूरत बढ़ रही है। आकलन के अनुसार प्रदेश को तत्काल कम से कम ढाई लाख फार्मासिस्ट की आवश्यकता है। इसके विपरीत फार्मासिस्टों की उपलब्धता 30 हजार के आसपास ही हैं। उत्तर प्रदेश फार्मेसी काउंसिल में कुल मिलाकर पंजीकृत 64 हजार फार्मासिस्टों में से कुछ दूसरे प्रदेशों के हैं तो दस हजार के आसपास दूसरे प्रदेशों में हैं। पांच हजार के आसपास सेवानिवृत्त या मृत हो चुके हैं और 15 हजार के आसपास सरकारी नौकरी में हैं। ऐसे में कुल मिलाकर 30 हजार फार्मासिस्ट ही प्रदेश के लिए उपलब्ध हैं। इस कमी से निपटने के लिए हर वर्ष फार्मासिस्टों की पर्याप्त संख्या पढ़कर भी नहीं निकल रही है।
 प्रदेश में फार्मेसी की शिक्षा की स्थिति को देखें तो वर्ष 1988 में प्रदेश के छह पॉलीटेक्निक संस्थानों में 190 व इलाहाबाद, कानपुर, मेरठ व आगरा मेडिकल कालेजों में 60 सीटों को मिलाकर कुल 250 फार्मासिस्ट तैयार होते थे। फार्मासिस्टों की लगातार बढ़ती मांग को देखकर निजी क्षेत्र में भी फार्मेसी संस्थान खुलने शुरू हुए। फार्मेसी काउंसिल के मौजूदा आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 111 संस्थानों में फार्मेसी में डिग्र्री व 52 में डिप्लोमा पाठ्यक्रम चलता है। डिग्र्री पाठ्यक्रम में हर वर्ष 7480 व डिप्लोमा में 3040 विद्यार्थियों को प्रवेश मिलता है। इस तरह हर वर्ष 10,520 विद्यार्थियों के प्रवेश लेने के बाद औसतन दस हजार फार्मासिस्ट तैयार होकर निकलते हैं। यह संख्या उत्तर प्रदेश में फार्मासिस्टों की जरूरत पूरी करने की दृष्टि से पर्याप्त नहीं है।
सायंकालीन कक्षाओं का प्रस्ताव
उत्तर प्रदेश फार्मेसी काउंसिल के अध्यक्ष सुनील यादव स्वीकार करते हैं कि जिस तेजी से मांग बढ़ी है, प्रदेश के संस्थान उस तेजी से फार्मासिस्ट नहीं तैयार कर रहे हैं। उन्होंने मौजूदा संस्थानों में ही सायंकालीन कक्षाएं चलाकर फार्मेसी की सीटें बढ़ाने का प्रस्ताव फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से किया है। मौजूदा संस्थानों में सीटें बढ़ाने की कोशिश भी की जा रही है। वे शासन स्तर पर भी इस बाबत प्रस्ताव भेजेंगे कि प्रदेश के हर मेडिकल कालेज में फार्मेसी पाठ्यक्रम अनिवार्य रूप से शुरू कर दिया जाए। वहां की मौजूदा ढांचागत सुविधाओं से मान्यता मिलने में भी दिक्कत नहीं होगी और युवाओं के लिए रोजगार के अधिक अवसर सृजित होंगे।
मेडिकल कालेजों में होगी पहल
चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक डॉ.वीएन त्रिपाठी का कहना है कि सरकारी व निजी मेडिकल कालेजों में फार्मेसी पाठ्यक्रम शुरू करने की व्यापक संभावनाएं हैं। पुराने कालेजों में फार्मेसी पाठ्यक्रम चल ही रहे हैं। जल्द ही नए कालेजों में भी इन्हें शुरू किया जाएगा। निजी क्षेत्र के मेडिकल कालेजों को भी इस ओर प्रोत्साहित किया जाएगा।

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