Saturday 22 August 2015

मुख्यमंत्री जी, यहां तो आज भी साध्य नहीं असाध्य रोग


- हृदय, कैंसर, लिवर व गुर्दा रोगों के मुफ्त इलाज की राह कठिन
- ज्यादातर अस्पतालों में इलाज की व्यवस्था न होने से दिक्कत
डॉ.संजीव, लखनऊ
कौशाम्बी के सिराथू निवासी रामप्रकाश को सीने में अचानक दर्द उठा तो घरवाले कस्बे के डॉक्टर के पास लेकर गए। लक्षणों से उन्हें शक हुआ तो उन्होंने तुरंत इलाहाबाद मेडिकल कालेज ले जाने की सलाह दी। वे लोग भाग कर वहां पहुंचे तो वहां ईसीजी के माध्यम से यह तो पता चल गया कि उन्हें दिल की बीमारी है, किन्तु जरूरी एंजियोग्र्राफी वहां न हो सकी और उन्हें निजी अस्पताल की शरण में जाना पड़ा।
यह व्यथा केवल रामप्रकाश की नहीं है, राज्य के अधिकांश उन लोगों की है, जो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की घोषणा के अनुरूप असाध्य रोगों के नि:शुल्क इलाज की आस लिए मेडिकल कालेजों से संबद्ध या अन्य बड़े अस्पताल तक पहुंचते हैं। बीते विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने असाध्य रोगों के नि:शुल्क इलाज का वादा किया था और सरकार बनने के तुरंत बाद इस पर काम भी शुरू हो गया था। चिकित्सा शिक्षा महकमा स्वयं मुख्यमंत्री ने संभाला था, इसलिए सरकार गठन के एक साल बाद 20 जून 2013 को प्रदेश के सभी राजकीय मेडिकल कालेजों व चिकित्सकीय संस्थानों में कैंसर, हृदय, लीवर व किडनी रोगों से ग्र्रस्त मरीजों के नि:शुल्क उपचार के लिए बाकायदा अधिसूचना जारी कर दी गयी थी। इस अधिसूचना के दो साल बीतने के बाद भी अब तक इन संस्थानों में इलाज के ही पुख्ता बंदोबस्त नहीं हुए हैं, जिससे मरीजों को अत्यधिक भटकना पड़ता है।
सैफई में इलाज कानपुर के सहारे
हालात ये हैं कि सैफई मेडिकल कालेज में तो इन बीमारियों के इलाज के नाम पर सिर्फ हृदय, लीवर व किडनी रोगियों का प्राथमिक चिकित्सकीय उपचार उपलब्ध है। कैंसर का तो इलाज ही वहां नहीं है और अन्य गंभीर परिस्थिति आने पर मरीज कानपुर रेफर कर दिये जाते हैं। कानपुर में भी लीवर व गुर्दा प्रत्यारोपण के साथ ही लीवर सर्जरी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। वहां जेके कैंसर संस्थान व हृदय रोग संस्थान होने के कारण इन बीमारियों की चिकित्सा व्यवस्था सुलभ है।
पूर्वांचल-बुंदेलखंड के हाल खराब
पूर्वांचल व बुंदेलखंड के मरीजों को भी असाध्य रोग होने पर असाध्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है। गोरखपुर मेडिकल कालेज में हृदय व लीवर रोगियों को भी महज सामान्य चिकित्सकीय उपचार व किडनी रोगियों को डायलिसिस तक सीमित रखा गया है। यही हाल झांसी व इलाहाबाद मेडिकल कालेजों से संबद्ध अस्पतालों का भी है। इन दोनों अस्पतालों में तो कैंसर का प्राथमिक उपचार तक संभव नहीं होता है।
आगरा-मेरठ में कैंसर का इलाज
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के दोनों मेडिकल कालेजों आगरा व मेरठ में कैंसर से संबंधित चिकित्सा तो उपलब्ध है किन्तु हृदय व लीवर रोगियों को निराश ही लौटना पड़ता है। किडनी रोगियों का इलाज भी यहां केवल डायलिसिस तक सीमित है। इलाज के मामले में लखनऊ खासा समृद्ध है और यहां के तीन संस्थानों किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय, संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान व डॉ.राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान में कैंसर, हृदय, लीवर व किडनी का इलाज पूर्णत: सुलभ है। अतिगंभीर व अतिविशिष्टता वाली ओपेन हार्ट सर्जरी और वाल्व रिप्लेसमेंट की सुविधा लोहिया संस्थान में नहीं है, तो किडनी व लीवर प्रत्यारोपण की सुविधा सिर्फ संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में उपलब्ध है।
ये हैं लाभार्थी
बीपीएल कार्ड धारक, बीपीएल सूची के सदस्य, सवा तीन एकड़ तक की जोत के कृषक, 35 हजार रुपये वार्षिक से कम आय वाले लोग
ये हैं असाध्य रोगी
कैंसर से पीडि़त समस्त मरीज, भर्ती कर इलाज की जरूरत वाले सभी हृदय रोगी, डायलिसिस, प्रत्यारोपण या स्टंटिंग जैसे ऑपरेशन की जरूरत वाले गुर्दा रोगी व एकल गुर्दे से संबंधित रोगी, दीर्घकालिक लीवर रोगी या लीवर प्रत्यारोपण व स्टंटिंग जैसे ऑपरेशन की जरूरत वाले रोगी
 सभी अस्पतालों में असाध्य रोगियों का इलाज
''ये मुद्दा शासन की प्राथमिकता सूची में है। सभी अस्पतालों में असाध्य रोगियों का इलाज सुनिश्चित कराया जा रहा है। जहां सुविधा नहीं है, वहां से निकटतम संस्थान को संदर्भित कर दिया जाता है। इसके लिए शासन स्तर से धन की कोई कमी नहीं होने दी जाती है। -डॉ.वीएन त्रिपाठी, चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक


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