Friday 28 August 2015

नेताओं व ब्यूरोक्रेसी की सांठगांठ से बढ़ा कदाचार


सप्ताह का साक्षात्कार
आईएएस के रूप में समाजसेवा का संकल्प लेकर कूदा एक युवक जैसे-जैसे उम्र के तमाम पड़ाव पार करता गया, व्यवस्था से उसका विश्वास भी उठता गया। 33 साल की नौकरी में नौ साल की छुट्टी और बाकी बचे 24 साल में 45 तबादले। ऐसे में विद्रोह की चिनगारी फूटी तो सरकार ही नहीं, साथी भी निशाने पर हैं। विद्यार्थियों से लेकर किसानों तक की लड़ाई लड़ रहे सार्वजनिक उद्यम विभाग के प्रमुख सचिव डॉ.सूर्य प्रताप सिंह से उनके सपनों से हकीकत तक के संघर्ष पर विशेष संवाददाता डॉ.संजीव ने विस्तृत बातचीत की। बातचीत के प्रमुख अंश:
-आईएएस ज्वाइन करते समय जो सपने देखे थे, वे कहां तक खरे उतरे?
--हम नींद उड़ाकर मेहनत कर आईएएस बने थे। हमें नैतिकता का प्रशिक्षण देकर आदर्श के रूप में सेवा का प्रशिक्षण दिया जाता था। लोकतंत्र में हर ब्यूरोक्रेट लोगों की समस्याओं का समाधान करना चाहता है। ऐसे में बार-बार तबादले करना दुखद होता है। 34 साल में 45 तबादले मेरे ही हुए हैं। अब इतनी जल्दी-जल्दी तबादलों से कामकाज में स्थायित्व कहां आएगा। ऊपर से तबादले भी कामकाज के आधार पर न होकर राजनीतिक दबाव में होते हैं।
आप बीच में नौ साल के लिए चले गए थे, आए तो फिर मोह भंग?
--मैं अध्ययन के लिए गया था। 2004 में गया था, 2013 में वापस आया तो मुझे लगा कि अब समस्याओं के समाधान ही नहीं है। ब्यूरोक्रेसी पार्टी लाइन व जाति में बंट गयी। एक दूसरे के प्रति आक्षेप लगाने जैसी स्थितियां पहले नहीं थीं। हम राजनीतिक दबाव भी एकजुटता से झेल जाते थे। आज भी ज्यादा लोग अच्छे हैं, किन्तु कुछ लाग राजनीतिक दबाव में निराशा का वातावरण बनाते हैं।
भ्रष्टाचार और व्यक्तिपरक व्यवस्था, क्या ज्यादा खतरनाक है?
--इस समय स्वेच्छाचारिता व कदाचार का वातावरण बन गया है। कोई कुछ भी कर ले, उसे दंड का डर नहीं है। राजनीतिक नेतृत्व व ब्यूरोक्रेसी के शीर्ष पर एक सांठगांठ सी हो गयी है। पहले ये दोनों गलती पर एक दूसरे को टोकते थे, अब दोनों ने हाथ मिला लिया है। इस कारण उन्हें कौन रोकेगा। सचिवालय के निचले स्तर तक राजनीति घुस गयी है।
नेताओं के सामने आईएएस के समर्पण पर आपकी क्या राय है?
--प्रलोभन व स्वार्थपरता के कारण पद के लिए आत्मसम्मान को खो दिया गया है। जिला पाने के लिए अब महिला अफसर तक पैर छू रही हैं। अब समर्पण शुरू कर दिया है। जिला स्तर के अधिकारी वहां के नेताओं से हाथ मिलाकर संरक्षण पा रहे हैं। जनता चिल्लाती रहे, उसकी परवाह नहीं है। बस अपने टिके रहने की परवाह है। इसीलिए कभी स्टैंड लेने पर उन्हें हटा दिया जाता है। हाल ही में एक जिले में डीएम ने विधायक को टोका तो उन्होंने जवाब दिया, अब आप कलक्टर नहीं रहे और थोड़ी देर में उनका तबादला आदेश आ चुका था।
किन परिस्थितियों को मानते हैं जिम्मेदार, कैसे हो इनका निदान?
--यह स्थिति लोकतंत्र के लिए खतरा है। लोकतंत्र में चुनाव जातियों व धर्म के आधार पर लड़े जाने लगे हैं। इस कारण एक जाति व एक धर्म को पकड़कर लोग चुनाव जीत जाते हैं। ऐसे में कुछ लोगों का वर्चस्व कायम हो जाता है। डराने-धमकाने का वातावरण बन गया है। जातियों को जोडऩे के लिए बनाया गया था, उनका प्रयोग समाज तोडऩे के लिए हो रहा है। इसके लिए सबसे पहले चुनाव सुधार की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। नैतिकता का स्तर गिर रहा है। बचपन से ही पैसा प्रभावी हो रहा है। राजनीतिक नेतृत्व को कदाचार बर्दाश्त न करने का संदेश देना होगा। पिछले दस सालों में बड़े-बड़े भ्रष्टाचार हुए, पर दोषियों पर कार्रवाई हुई। अब तो काम करने वाले अधिकारियों से भी काम नहीं लिया जा रहा। उनसे कुपोषण, शिक्षा जैसे काम तो ले लो भाई। राज्य के संसाधनों को आपस में मत बांटो, जनता तक पहुंचाओ। 1440 थानों में तीन लाख वांछित अपराधी सड़क पर घूम रहे हैं। इन पर कार्रवाई नहीं हो रही है।
आप सरकार के खिलाफ बोल रहे हैं, वह सेवा नियमावली के खिलाफ है?
--मैं सरकार के खिलाफ कुछ नहीं बोल रहा। मैं सामाजिक मुद्दों पर बोलकर सरकार के पक्ष में ही बोल रहा है। मैंने किसानों को ओलावृष्टि का मुआवजा न मिलने, नकल न रोक पाने जैसे मुद्दे उठाए। सरकार भी मुआवजा देना चाहती है, नकल रोकना चाहती है। मैं तो वही बोल रहा हूं, जो सरकार चाहती है। ऐसे में परेशान वही लोग हैं, जो सरकार को उसकी मंशा के अनुरूप काम नहीं करने देना चाहते।
आपकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चर्चे भी होते हैं?
--राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए यह सब करने की जरूरत नहीं है। अब मैं समाज के लिए सर्वाधिक समय देना चाहता हूं। मैं उन बच्चों की लड़ाई लडऩा चाहता हूं, जो रात-दिन एक करके पढ़ाई करते हैं, फिर उन्हें न्याय नहीं मिलता। मैं किसानों को उनका हिस्सा दिलाना चाहता हूं।

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