Monday 31 August 2015

सूबे के अस्पतालों में साल भीतर बढ़ेंगे 12 हजार बेड

-इनमें आठ हजार बेड जच्चा-बच्चा के लिए होंगे आरक्षित
-67 प्रतिशत बच्चों का टीकाकरण, हर माह बढ़ाने का लक्ष्य
-स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति बीस फीसद ज्यादा खर्च का फैसला
राज्य ब्यूरो, लखनऊ
सूबे की सेहत ठीक करने के लिए सरकार ढांचागत सुधार पर जोर दे रही है। स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव अरविंद कुमार के मुताबिक एक साल के भीतर राज्य के अस्पतालों में 12 हजार बेड बढ़ाए जाएंगे।
मंगलवार को यहां एक होटल में जच्चा-बच्चा व किशोर स्वास्थ्य पर आयोजित कार्यशाला में प्रमुख सचिव ने बताया कि राज्य के 4500 अस्पतालों में इस समय इलाज के लिए चालीस हजार बेड उपलब्ध हैं। एक साल के भीतर इनमें 12 हजार की वृद्धि हो जाएगी। इनमें भी आठ हजार बेड जच्चा-बच्चा के लिए आरक्षित होंगे। इसके अलावा 20 हजार स्वास्थ्य उपकेंद्रों व डेढ़ लाख आशा कार्यकर्ताओं का नेटवर्क जमीनी स्तर तक सेहत सुरक्षा प्रदान करने की कोशिश में लगा है। राज्य को सेहत के स्तर पर जागरूकता की अत्यधिक जरूरत है और वह अकेले सरकार के वश में नहीं है। उन्होंने बताया कि राज्य के 67 प्रतिशत बच्चों का संपूर्ण टीकाकरण हो रहा है। अब यह संख्या हर माह एक प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के निदेशक अमित घोष ने कहा कि यह वर्ष मातृ-शिशु स्वास्थ्य वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। इसके साथ ही अब किशोरावस्था से ही सेहत की चिंता की जा रही है। सुविधाओं और समाज से सीधे जुड़ाव पर फोकस किया जा रहा है। स्वास्थ्य पर प्रति व्यक्ति बीस प्रतिशत ज्यादा खर्च करने का फैसला हुआ है। राज्य में प्रति वर्ष 23 लाख 80 हजार बच्चे सरकारी अस्पतालों में पैदा होते हैं। ऐसे में एक साल से कम उम्र के बच्चों की जान बचाने का लक्ष्य रखा गया है, क्योंकि इससे परिवार कल्याण में भी सकारात्मक परिणाम सामने आते हैं। उत्तर प्रदेश तकनीकी सहायता इकाई के कार्यकारी निदेशक विकास गोठलवाल ने जच्चा-बच्चा की सेहत सुधारने के लिए 'जीवन चक्रÓ पद्धति पर जोर दिया जा रहा है। इसमें नियमों से कार्यप्रणाली तक को मूर्त रूप देना प्राथमिकता में शामिल है। यह कठिन तो हैै, किन्तु अब सामूहिक प्रयासों से संभव हो रहा है। इसके लिए राज्य के उन 100 ब्लाकों पर फोकस किया जा रहा है, जहां जच्चा-बच्चा की सेहत व परिवार कल्याण की दृष्टि से स्थितियां बहुत खराब थीं। वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ वद्र्धराजन ने स्काइप के माध्यम से संबोधित करते हुए अग्र्रिम पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की आवाज बुलंद करने पर जोर दिया। परियोजना निदेशक डॉ.बीएम रमेश ने मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में प्रभावी कमी लाने के लिए स्वास्थ्य केंद्रों के स्तर तक प्रयास किये जा रहे हैं। कम्युनिटी प्रोसेस टीम के मुखिया भरतलाल पाण्डेय ने कहा कि आशा, आंगनवाड़ी व एएनएम में प्रभावी संवाद से स्थितियां सुधर रही हैं। संयोजन सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च की अधिशासी निदेशक अखिला शिवदास व संचालन परियोजना प्रबंधक रश्मि काला ने किया।
...जब आशा कार्यकर्ता को खुद करानी पड़ी नसबंदी
लखनऊ: कार्यशाला में बाराबंकी से आयी आशा कार्यकर्ता पूनम ने अपने अनुभव बताकर वहां मौजूद लोगों के साथ सीधे संवाद किया। उन्होंने बताया कि वे महिलाओं से नसबंदी के लिए कहती थीं, तो लोग कहते, पहले खुद कराओ। उनकी सास उन्हें नसबंदी कराने नहीं दे रही थीं। बाद में सबको तैयार कर पहले खुद नसबंदी कराई, फिर गांव के अन्य लोगों को तैयार किया। यही नहीं घर की दीवाल पर भी लिखवा दिया, 'मैंने नसबंदी करवा ली हैÓ। सीतापुर की नर्स मेंटर प्रियंका, बाराबंकी की नर्स मेंटर ऋचा और बाराबंकी की स्वास्थ्य कार्यकर्ता आरती जायसवाल व गुलप्सा बानो ने भी अपने अनुभव बांटे।

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